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बुद्धि से आप क्या समझते हैं | अर्थ , सिद्धांत , प्रकार ,

बुद्धि से आप क्या समझते हैं ? इस के सिद्धांतों का वर्णन करें ।

बुद्धि एक समान शब्द है जिसका प्रयोग हम अपने दिन प्रतिदिन के बोलचाल की भाषा में करते हैं तेजी से सीखने समझने तार्किक चिंतन करने इत्यादि गुणों के लिए दिन प्रतिदिन की भाषा में बुद्धि शब्द का प्रयोग करते हैं ।

बुद्धि में सिर्फ एक ही तरह के क्षमता सम्मिलित नहीं होते बल्कि इसमें अनेक तरह की क्षमताएं सम्मिलित होती है ।

बेसलर के अनुसार बुद्धि एक सामाजिक क्षमता है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्य पूर्ण क्रिया करता है विवेकशील चिंतन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से समायोजन करता है ।

प्रायः उसी व्यक्ति को बुद्धिमान कहा जाता है जो प्रत्येक परिस्थिति में सरल रूप से उसे सुलझ आने का प्रयास करता है यह व्यक्ति को सोचने की शक्ति को बढ़ाकर उसके कार्यों की जाम तक पहुंचाने में सफलता हासिल करता है ।

बंकिधम धर्म के अनुसार सीखने की शक्ति ही बुद्धि होती है ।

बुद्धि के प्रकार

E. L. Thorndike के अनुसार बुद्धि के तीन प्रकार होते हैं

  1. समाजिक बुद्धि ( Social Intelligence)
  2. अमूर्त बुद्धि ( Abstract Intelligence )
  3. मूर्त बुद्धि ( Concrete Intelligence )

सामाजिक बुद्धि सामाजिक बुद्धि हुआ है जो सामाजिक संबंधों के बनाने बढ़ाने सुधारने एवं निर्वाहन करने में सहायता प्रदान करती है ।

साधारण बोलचाल की भाषा में व्यक्ति समाज में समायोजन करता है और विभिन्न व्यवसाय में सफलता प्राप्त करता है यह बुद्धि मित्र बनाने में संबंधों को सफलतापूर्वक निभाने में कक्षा एवं समाज में सहयोग करने इत्यादि में प्रयुक्त होता है ।

सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य वैसे समाज मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है तथा व्यवहारिक कुशलता भी दिखाता है ऐसे लोगों का सामाजिक संबंध काफी अच्छा होता है तथा समाज में उनकी प्रतिष्ठा काफी होती है

अमूर्त बुध्दि अमूर्त विषयों के बारे में चिंतन करने की क्षमता को ही और मूर्त बुद्धि कहा जाता है ऐसी बुद्धि में व्यक्ति शब्द प्रतीक तथा अन्य अमूर्त चीजों के सहारे अच्छे से चिंतन कर लेता है ।

इस ढंग के की क्षमता दार्शनिक , कलाकार, कहानीकार इत्यादि में अधिक होती है । ऐसे लोग प्रायः अपने विचारों कल्पना हुए एवं मानसिक प्रतिमा ( Mental image ) के सहारे बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान कर लेते हैं ।

जिन छात्रों में अमूर्त बुद्धि अधिक होती है उनकी शैक्षणिक उपलब्धियां अधिक श्रेष्ठ होती है ।

जिन व्यक्तियों मेरा मूर्त बुद्धि अधिक होती है वह सफल कलाकार पेंटर गणितज्ञ एवं कहानीकार इत्यादि बनते हैं ।

अमूर्त बुद्धि को लोगों सृह्वान्तिक बुद्धि के नाम से भी जानते है ।

मूर्त बुध्दि :- मूर्त बुद्धि से तात्पर्य ऐसी मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति मूर्ति या ठोस वस्तुओं का महत्व को समझता है । उनके बारे में सोचता है तथा अपनी इच्छा एवं आवश्यकता अनुसार उनमें परिवर्तन लाकर उन्हें उपयोगी बनाता है ।

इसे व्यावहारिक बुद्धि (Practical Intelligence ) भी कहा जाता है

जिन बालकों में मूर्ति बुद्धि अधिक होती है । उनमें हस्तकला ओं की क्षमता अधिक होती है तथा वे आगे चलकर एक सफल इंजीनियर या कुशल कारीगर बनने में सफलता प्राप्त करते हैं ।

जिन व्यक्तियों अमूर्त बुद्धि अधिक होती है वह सफल कलाकार पेंटर गणितज्ञ एवं कहानीकार इत्यादि बनते हैं ।

मानसिक आयु ( Mental Age. )

इसको सबसे पहले बीवी ने दिया था या किसी व्यक्ति की युवा विकास सीमा है जो उसके कार्यों द्वारा जानी जाती है और उस आयु विशेष में उसकी अपेक्षा की जाती है उदाहरण के तौर पर यदि किसी बालक की मानसिक आयु 9 वर्ष बताई जाती है और वह परीक्षा में 9 वर्ष की आयु के बालकों के समान ही कार्य करता है तो वह 9 वर्ष का आयु कहलाएगा ।

वास्तविक आयु ( Chronogical Age )

. यह किसी भी व्यक्ति की आयु है जो वास्तविकता प्रदर्शित करता है । व्यक्ति की वास्तविक आयोग पहले से ही ज्ञात होती है ।

उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट होता है कि

  • मानसिक आयु वास्तविक आयु से कम आधे किया बराबर हो सकती है ।
  • जब मानसिक आयु तैथिक आयु से कम होती है तो व्यक्ति को मंदबुद्धि समझा जाता है ।
  • जब मानसिक आयु तैथिक आयु से अधिक होती है तो व्यक्ति तीव्र बुद्धि का समझा जाता है ।
  • और जब मानसिक आयु तथा तैथिक आयु एक दूसरे के बराबर होते हैं तो व्यक्ति को सामान्य बुद्धि समझा जाता है ।

बुद्धि लब्धि

बुद्धि मापन के लिए सबसे पहला बुद्धि परीक्षण विन तथा साइमन ने 1905 में विकसित किया । इस परीक्षण में बुद्धि को मानसिक आयोग के रूप में मां को अभिव्यक्त किया गया परंतु इससे मनोवैज्ञानिकों को अधिक संतुष्टि नहीं मिली ।

1916 में विने साइमन परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण संशोधन टर मैन (Tremen ) ने स्टेन फॉर्ड विश्वविद्यालय में किया । इसी संशोधन में बुद्धि के संप्रत्यय का जन्म हुआ और बुद्धि को मापने में मानसिक आयु की जगह बुद्धि लब्धि का प्रयोग होने लगा ।

हालांकि बुद्धि लब्धि के बारे में जर्मनी के विलियम यस्टर्न ( Starn ) ने 1912 में ही सुझाव दे रखा था ।

बुद्धि लब्धि मानसिक आयु तथा तैथिक आयु का एक ऐसा अनुपात है जिसमें 100 से गुणा कर प्राप्त किया जाता है । यही कारण है कि इसे अनुपात बुद्धि लब्धि भी कहा जाता है ।

उदाहरण के तौर पर मान लिया जय की किसी बुद्धि परीक्षण द्वारा मां अपने 6 साल कि बच्चे की मानसिक आयु 5 साल आता है और 4 साल के बच्चे की मानसिक आयु 5 साल आता है तो पहला बच्चा का बुद्धि लब्धि 83 आएगा तथा दूसरे बच्चे का बुद्धि लब्धि 125 आएगा इससे स्पष्ट होता है कि दूसरा बच्चा पहले बच्चा से अधिक तेज है ।

इस तरह बुद्धि लब्धि द्वारा हमें प्रारंभ के उम्र का होने वाला तीव्र बौद्धिक विकास का स्पष्ट ज्ञान होता है । क्योंकि बौद्धिक विकास कम उम्र में यानी 3 से 4 साल में अधिक तेजी से होता है और अधिक उम्र 15-16 साल की उम्र होने पर इसकी गति धीमी हो जाती है । अतः मानसिक आयु तथा तैथिक आयु में सामान अंतर होता है । हुए भी इन दोनों अवस्थाओं की बुद्धि लब्धि में अधिक अंतर हो जाएगा ।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए लिया जाए कि एक 5 साल के बच्चे की मानसिक आयु 4 साल है तथा 15 साल के बच्चे की मानसिक आयु 14 साल है तो क्या दोनों बच्चे बच्चों का बुद्धि लब्धि समान है ? बिल्कुल नहीं

15 साल के बच्चे की बुद्धि लब्धि 93 जबकि 5 साल की बच्चे की बुद्धि लब्धि 80 आता है । स्पष्ट है कि मानसिक आयु तथा तैथिक आयु में समान अंतर रहने पर भी दोनों बच्चों की बुद्धि लब्धि में अंतर हो जाएगा ।

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