स्थिर विद्युत किसे कहते हैं
पदार्थों को परस्पर रगड़ने पर जो आवेश की मात्रा संचित होती है उसे स्थिर विद्युत कहते हैं |
विद्युत आवेशों के प्रकार
बेंजामिन फ्रैंकलिन के अनुसार विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं –
धन आवेश और ऋण आवेश
इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण क्या है?
आधुनिक इलेक्ट्रॉन सिद्धांत के अनुसार, जब दो वस्तुएं आपस में रगड़ती हैं, तो उनमें से एक वस्तु के परमाणुओं की बाहरी कक्षा से भ्रमणशील इलेक्ट्रॉन निकलकर दूसरी वस्तु के परमाणुओं में चले जाते हैं। इससे पहली वस्तु पर इलेक्ट्रॉनों की कमी और दूसरी वस्तु पर इलेक्ट्रॉनों की वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि एक वस्तु धनात्मक आवेशित हो जाती है और दूसरी ऋणात्मक।
विद्युत आवेश का एसआई मात्रक कुलम है जिसे अंग्रेजी के सी अक्षर से डिनोट किया जाता है ।
1 कूलंब , वैद्युत आवेश की वह मात्रा है जो उससे 1 मीटर की दूरी पर रखें एक समान आवेश पर 9× 10^9 न्यूटन का बल लगती है ।
सभी पदार्थ में , प्रोटॉन नामक धनात्मक आवेशित कण और इलेक्ट्रॉन नामक ऋणात्मक आवेशित कण होते हैं । एक प्रोटोन में 1.6 × 10 ^ -19 C धन आवेश होता है ।
आवेश का पृष्ठ घनत्व और चालक-अचालक पदार्थों की भूमिका
आवेश का पृष्ठ घनत्व (Surface Density of Charge) उस आवेश की मात्रा को दर्शाता है जो चालक की इकाई क्षेत्रफल पर स्थित होता है। यह मात्रा चालक के आकार, उसके समीप स्थित अन्य चालकों, और विद्युत-रोधी पदार्थों पर निर्भर करती है। चालक के नुकीले हिस्से पर पृष्ठ घनत्व सबसे अधिक होता है, क्योंकि उस हिस्से का क्षेत्रफल कम होता है।
चालक (Conductors) वे पदार्थ होते हैं जिनसे होकर विद्युत आवेश सरलता से प्रवाहित होता है। जैसे चांदी, तांबा, और एल्युमिनियम अच्छे चालक माने जाते हैं। तांबे का इस्तेमाल तड़ित चालक के रूप में सबसे अधिक होता है, और इसका आविष्कार बेंजामिन फ्रैंकलिन द्वारा किया गया था।
इसके विपरीत, अचालक (Nonconductors) वे पदार्थ होते हैं जिनसे होकर आवेश का प्रवाह नहीं हो सकता। लकड़ी, रबर, और कागज जैसे पदार्थ अचालक माने जाते हैं। इन पदार्थों का उपयोग आमतौर पर विद्युत सुरक्षा के लिए किया जाता है।
इस प्रकार, आवेश के पृष्ठ घनत्व और चालक-अचालक पदार्थों का ज्ञान विद्युत विज्ञान के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, जो हमारे रोजमर्रा के जीवन और विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चालक के उदाहरण
उदाहरण के लिए लगभग सभी धातु में अम्ल क्षार , लवणों के जलीय विलयन, मानव शरीर इत्यादि ।
सबसे अच्छा चालक चांदी है । दूसरा स्थान ताँबा का हैं ।
अचालक के उदाहरण
जैसे लकड़ी , रबर , कागज , अभ्रक इत्यादि ।
अर्द्धचालक
वैसा पदार्थ जिससे विद्युत चालकता चालक एवं अचालक के बीच होती है उन्हें अर्द्धचालक कहते हैं जैसे सिलिकन , जर्मेनियम , कार्बन , सेलेनियम इत्यादि ।
परमशून्य ताप पर अर्धचालक पदार्थ आदर्श अचालक की भांति व्यवहार करता है । अर्द्धचालक पदार्थों में अशुद्धियां मिलाने पर उसकी विद्युत चालकता बढ़ जाती है ।
तड़ित चालक
तड़ित, दो आवेशित बादलों के बीच या आवेशित बादलों और पृथ्वी के बीच उत्पन्न होता है । तड़ित चालक का प्रयोग तड़ित के दौरान भवनों की सुरक्षा के लिए किया जाता है ।
विद्युत धारा
किसी चालक में विद्युत धारा की मात्रा 1 सेकंड में चालक के पदत्त बिंदु से होकर गुजरने वाले विद्युत आवेश की मात्रा होती है ।
एम्पियर विद्युत धारा का एस आई मात्रक है , जिसे अंग्रेजी के अक्षर A द्वारा डिनोट किया जाता है ।
धारा को धारामापी नामक यंत्र द्वारा मापा जाता है ।
दिष्ट धारा Direct current (D C )
यदि धारा केवल एक ही दिशा में प्रवाहित होती है तो उसे दिष्ट धारा कहते हैं ।
ऐसी विद्युत धारा जिसमें धारा और दिशा का मान न्यूज़ रहे दिष्ट धारा कहलाती है ।
यह धारा सेल बैटरी जनरेटर आदि से प्राप्त की जाती है ।
प्रत्यावर्ती धारा. Alternative current (A C )
वैसी धारा जिसका प्रवाह एकांतर क्रम में समान्तर रूप से आगे और पीछे होती हो तो ऐसी धारा प्रत्यावर्ती कहलाती है ।
प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवांतर को मापने के लिए को मापने के लिए तप्त तार आमीटर एवं वोल्ट मीटर का प्रयोग किया जाता है ।
प्रत्यावर्ती धारा को विद्युत ऊर्जा की अधिक हानि के बिना लंबी दूरियों तक संप्रेषित किया जा सकता है ।
दिष्ट धारा और परावर्तित धारा में अंतर
दिष्ट धारा | प्रत्यावर्ती धारा |
दिष्ट धारा को दूर तक भेजना सुविधाजनक नहीं है क्योंकि इससे ऊर्जा ह्रास अधिक होती है | प्रत्यावर्ती धारा को दूर तक भेजना सुविधाजनक होता है क्योंकि इससे ऊर्जा ह्रास नहीं होती है |
इसका परिणाम और दिशा समय के साथ नहीं बदलता है | इसका परिणाम और दिशा समय के साथ बदलता है |
से बैटरी में संचित किया जा सकता है सकता ह | इसे बैटरी में संचित नहीं किया जा सकता है |
इसके सा के साथ ट्रांसफार्मर का प्रयोग नहीं होता है | इसके साथ ट्रांसफार्मर का प्रयोग होता है |
दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में बदलने के लिए इनवर्टर का प्रयोग किया जाता है । | प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलने के लिए रेक्टिफायर्स का प्रयोग किया जाता है । |
ओम का नियम
ओम का नियम धारा एवं विभवांतर के बीच संबंध बताता है स्थिर ताप पर चालक से होकर प्रवाहित होने वाली धारा उसके सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है ।
विद्युत विभव
किसी बिंदु पर 1 वोल्ट विभव का अर्थ होता है कि 1 कूलंब धन आवेश को अनंत से उस बिंदु तक चलाने में एक जूल कार्य किया जाता है ।
एकांक आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य उस बिंदु का विभव कहलाता है ।
इसका मात्रक J/C या वाल्ट होता है ।
विभवांतर
दो बिंदुओं के बीच वैद्युत विभव में अंतर को विभवांतर कहा जाता हैं ।
किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभांतर को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक इकाई आवेश को चलाने में किए गए कार्य की मात्रा के रूप में परिभाषित किया जाता है ।
जब किसी चालक में से विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो उसके सिरो के विभावों में कुछ अंतर पैदा हो जाता है , जब विभवांतर कहते हैं ।
विभवांतर का मान धारा के घटने तथा बढ़ने पर क्रमशा: घटता एवं बढ़ता है ।
परिपथ में धारा का परवाह सुन होने पर विभवांतर का मान शुभ हो जाता है ।